Last modified on 19 अक्टूबर 2010, at 09:48

नीम तले / बुद्धिनाथ मिश्र

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:48, 19 अक्टूबर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बुद्धिनाथ मिश्र |संग्रह=शिखरिणी / बुद्धिनाथ मि…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

फिर दोपहर लगी
अलसाने नीम तले
कौवे लगे पंख खुजलाने
नीम तले ।
 
सिर पर पसरी छाँह लगी हटने
ताल-नदी के होठ लगे फटने
हवा लगी अफ़वाह उड़ाने
नीम तले ।

टहनी-टहनी सूख हुई काँटा
खेतों में फैला फिर सन्नाटा
अंग-अंग फिर लगे पिराने
नीम तले ।

चैता आँके रेख महावर की
खलिहानों को याद आए घर की
आँचर लगे नयन उलझाने
नीम तले ।