Last modified on 19 अक्टूबर 2010, at 12:39

चादर / भोला पंडित प्रणयी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:39, 19 अक्टूबर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भोला पंडित प्रणयी |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <poem> चादर से व्…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

चादर से व्यक्ति की
पहचान बनती है-
चादर में आदर है ।

चादर रेशमी हो या सूती
सादी हो या रंगीन
वह स्वच्छ होनी चाहिए
और उसकी सुरक्षा
कबीर की तरह
”ज्यों की त्यों धर दीनी“
की तरह भी हो ।

ख़याल रहे-
चादर में दाग न लगे
और अपने पाँव
चादर से बाहर न फैलाएँ ।