Last modified on 21 अक्टूबर 2010, at 12:12

साँचा:KKPoemOfTheWeek

Lotus-48x48.png  सप्ताह की कविता   शीर्षक : जहाँ भर में हमें बौना बनावे धर्म का चक्कर
  रचनाकार: पुरुषोत्तम 'यक़ीन'
जहाँ भर में हमें बौना बनावे धर्म का चक्कर
हैं इंसाँ हिंदू, मुस्लिम, सिख बतावे धर्म का चक्कर

ये कैसा अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक का है झगड़ा
करोड़ों को हज़ारों में गिनावे धर्म का चक्कर

चमन में फ़ूल ख़ुशियों के खिलाने की जगह लोगों
बुलों को खून के आँसू रुलावे धर्म का चक्कर

कभी शायद सिखावे था मुहब्बत-मेल लोगों को
सबक नफ़रत का लेकिन अब पढ़ावे धर्म का चक्कर

सियासत की बिछी शतरंज के मुहरे समझ हम को
जिधर मर्जी उठावे या बिठावे धर्म का चक्कर

यक़ीनन कुर्सियाँ हिलने लगेंगी ज़ालिमों की फ़िर
किसी भी तौर से बस टूट जावे धर्म का चक्कर

मज़ाहिब करते हैं ज़ालिम हुकूमत की तरफ़दारी
निज़ामत ज़ुल्म की अक्सर बचावे धर्म का चक्कर

निकलने ही नहीं देता जहालत के अँधेरे से
"यक़ीन" ऎसा अजब चक्कर चलावे धर्म का चक्कर
</poem>