रूंख / ओम पुरोहित ‘कागद’

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थे
एक अभियान मांय
रूंख लगायो
दूजै मांय सींच्यो
अनै
तीजै अभियान मांय
काट बगायो ।
ठीक है
थे मालक हा, रूंख रा
पण उथळो तो देवणो ई पड़ सी
कै जिकी रूंख नै जाम्यो
पानका निकळण सूं लेय’र
काटण तांईं मून ही
बा धरती
उण रूंख री कुण ही ?

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