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स्वर्ण के शतदल कलश / केदारनाथ अग्रवाल

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गल गई है भयावनी भीमामूर्ति
असित रात की
स्वराट सूर्य के प्राथमिक प्रकाश
को छूकर
प्रारम्भ हो गया है स्वस्तिवाचन
सरल संगीत का
सुख ने रच लिए हैं
सरवर सलिल पर
स्वर्ण के शतदल कलश

रचनाकाल: २५-१२-१९६१