समय ने जब भी अधेंरो से दोस्ती की है जला के हमने अपना घर रोशनी की है सुबूत हैं मेरे घर में धुएं के ये धब्बे अभी यहाँ पर उजालों ने ख़ुदकुशी की है। कविता कोश में गोपालदास "नीरज"