Last modified on 31 अक्टूबर 2010, at 20:30

बीजने / पवन करण

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:30, 31 अक्टूबर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पवन करण |संग्रह=स्त्री मेरे भीतर / पवन करण }} {{KKCatKavit…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

 
इस बीच सब इन्हें भूल जाते हैं
किसी को याद नहीं रहता
सींकों पर पुराने कपड़ों
और रंगीन धागों की कारीगरी
घर में किस जगह रखी है
कोई नहीं बता पाता
खजूर के पत्तों में बसे
ठंडी हवा के झोंके
किस कोने में पड़े हैं घर के
पर ज्यों ही मौसम की देह
दहकना शुरू होती है
वह इन्हें बाहर निकालती है
और कहती है
क्या भरोसा बिजली का