उड़ने को बेताब उसके दिन
मेरे हाथों में
फड़फड़ा रहे हैं
मेरे कानों में रेंग रहे हैं
उसके शब्द
उसकी इच्छाएँ
मेरी जेबों में भरी पड़ी हैं
उसकी लहलहाती देह
जिसे बुरी तरह रौंदकर
मैं अभी-अभी लौटा हूँ
मेरी टापों के नीचे
पकी फसल जैसी है
वह जो एक दिन मेरे
पीछे-पीछे आई थी चलकर
मेरे विस्तार में
ख़ुद को खोज रही है