Last modified on 8 नवम्बर 2010, at 12:21

हमने तो.... / रमेश रंजक

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:21, 8 नवम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश रंजक |संग्रह=गीत विहग उतरा / रमेश रंजक }} {{KKCatNav…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

धुँधले दिन हमने उजलाये
रात में डुबो कर
हमने तो
धुँधले दिन उजलाये ।

बूढ़ी संध्याओं की भीड
चली गई
टूटी प्रतिध्वनियाँ
स्याही में सिमट गए नीड़
हवा हुईं
प्रतिबिम्बित छवियाँ

ऊब भरे साये दहकाए
मुर्दा से ढो कर
हमने तो......

गंगाजलः आँसू की बूँद
पी कर ही
रश्मियाँ उगाईं
दुखियारी पलकों को मूँद
भीतर ही
डुबकियाँ लगाईं

सारा ईमान खींच लाए
अम्ल में भिगो कर
हमने तो.....