Last modified on 8 नवम्बर 2010, at 13:17

भूख / फ़रीद खान

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:17, 8 नवम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=फ़रीद खान |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <poem> भूख बनाती है मूल्…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

भूख बनाती है मूल्य ।

इस पार या उस पार होने को उकसाती है ।
नियति भूख के पीछे चलती है ।
ढा देती है मीनार ।

सभी ईश्वर, देवी-देवता स्तब्ध रह जाते हैं ।
भूख रचती है इतिहास ।