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चिनगी / केदारनाथ अग्रवाल

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वह
गई नहीं
ले जाई गई जबरन
दाबकर चिमटे से
चिनगी
चिलम में पहुँचाई गई
और पी जाई गई
जैसे गाँजा
न वह रही
न उसकी याद

रचनाकाल: ३०-०५-१९६९