Last modified on 12 नवम्बर 2010, at 14:03

ग़म बिकते है/जावेद अख़्तर

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:03, 12 नवम्बर 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)



ग़म बिकते है
बाजारों में
ग़म काफी महंगे बिकते है
लहजे की दूकान अगर चल जाये तो
जज्बे<ref>भावनाओं</ref> के गाहक
छोटे बड़े हर ग़म के खिलोने
मुंह मांगी कीमत पे खरीदें
मेने हमेशा अपने ग़म अच्छे दामों बेचे है
लेकिन
जो ग़म मुझको आज मिला है
किसी दुकां पर रखने के काबिल ही नहीं है
पहली बार में शर्मिन्दा हूँ
ये ग़म बेच नहीं पाऊंगा

शब्दार्थ
<references/>