|
बर्फ़-सी रात है और है एक कुविचार
खिड़की में से दिख रही है दीप्ति अपार
दूर हैं पहाड़ और पहाड़ियाँ कुछ नंगी
मेरे बिस्तर पर फैली है रोशनी नारंगी
चाँदनी के नीचे यहाँ कोई नहीं है
सिर्फ़ मैं हूँ और मेरा ख़ुदा है
मेरी इस मृत उदासी का वही राजदाँ है
जानता है वह कि मैं सबसे छिप रहा हूँ
दूर मुझसे अब यह सारा जहाँ है
बस अब यही-सब बचा यहाँ है
ठंड है, चमक है और है एक कुविचार
(1952)
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय