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नादान प्रेमिका से / शैलेन्द्र

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रचनाकार: शैलेन्द्र

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तुमको अपनी नादानी पर

जीवन भर पछताना होगा!


मैं तो मन को समझा लूंगा

यह सोच कि पूजा था पत्थर--

पर तुम अपने रूठे मन को

बोलो तो, क्या उत्तर दोगी ?

नत शिर चुप रह जाना होगा!

जीवन भर पछताना होगा!


मुझको जीवन के शत संघर्षों में

रत रह कर लड़ना है ;

तुमको भविष्य की क्या चिन्ता,

केवल अतीत ही पढ़ना है!

बीता दुख दोहराना होगा!

जीवन भर पछताना होगा!


1946 में रचित