Last modified on 17 नवम्बर 2010, at 02:15

पांखी / दीनदयाल शर्मा

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:15, 17 नवम्बर 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

लूखौ सूकौ
जिकौ भी
मिलज्यै
खा ल्यै ।

का'ल री
कोई चिन्त्या नीं
का'ल री का'ल देखै
अर
उड ज्यै
पांख्यां फैलाय'र
खुलै असमान में
भळै
आपरां री आवै ओळ्यूं
तद
सूरज छिपण सूं
पै'लांईं आ ज्यै
आपरै आ'लणै
आपरां रै बीच
बातां सारू ।