Last modified on 17 नवम्बर 2010, at 13:10

यह रात / अनिल जनविजय

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:10, 17 नवम्बर 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मैं हूँ, मन मेरा उचाट है
यह बड़ी विकट रात है
रात का तीसरा पहर
और जलचादर के पीछे झिलमिलाता शहर

ऊपर
लटका है आसमान काला
चाँद फीका फीका,
मय का खाली प्याला

मन में मेरे शाम से ही
तेरी छवि है
इतने बरस बाद आज फिर याद जगी है
आग लगी है

(2004)