Last modified on 31 मई 2007, at 21:28

रजनीबाला / रामकुमार वर्मा

अमित (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 21:28, 31 मई 2007 का अवतरण (New page: रचनाकार: रामकुमार वर्मा Category:कविताएँ Category:रामकुमार वर्मा ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

रचनाकार: रामकुमार वर्मा

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~

इस सोते संसार बीच
जग कर सज कर रजनी बाले!
कहाँ बेचने ले जाती हो,
ये गजरे तारों वाले?

मोल करेगा कौन
सो रही हैं उत्सुक आँखें सारी
मत कुम्हलाने दो,
सूनेपन में अपनी निधियाँ न्यारी

निर्झर के निर्मल जल में
ये गजरे हिला हिला धोना
लहर लहर कर यदि चूमे तो,
किंचित् विचलित मत होना

होने दो प्रतिबिम्ब विचुम्बित
लहरों ही में लहराना
'लो मेरे तारों के गजरे'
निर्झर-स्वर में यह गाना

यदि प्रभात तक कोई आकर
तुम से हाय! न मोल करे!
तो फूलों पर ओस-रूप में,
बिखरा देना सब गजरे