Last modified on 20 नवम्बर 2010, at 22:17

सफ़र / संजय मिश्रा 'शौक'

Alka sarwat mishra (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:17, 20 नवम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna}} रचनाकार=संजय मिश्रा 'शौक' संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> सफर जीवन रथ ह…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

रचनाकार=संजय मिश्रा 'शौक' संग्रह= }}

सफर
जीवन रथ है दो पहियों का
दोनों पहिये साथ रहें तो
सफर बहुत आसां होता है
हवस का कीचड़
इन पहियों को
सम्त बदल देता है अक्सर
सम्त बदल जाने से ही
रफ़्तार शिकन खाती है पल-पल
और डगर पर
चलना मुश्किल हो जाता है
ये मुश्किल
आसान अगर करना है तुमको
हवस के इस कीचड़ से
दोनों पहियों को तुम पाक करो
और
सफर का सारा मजा उठाओ
नियत समय पर मंजिल पाओ