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मेरा बसंत / मंगत बादल

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आपके आता होगा बसंत
फागुन में ।
यहां तो भाई आषाढ़ में
यदि आसमान फूट जाए
और जम जाए बाजरे की जड़,
फैल जाए
काकड़िये-मतीरों की बेलें
मूंग-मोठ धरती को ढक लें
तो सावन-भादवे से
सभी ऋतुएं नीचे है ।
यह थार है ! थार !!
यहां सारी ऋतुएं अलग है
दुनिया से ।
यहां बचपन से सीधा
बुढ़ापा आता है ;
जवानी का पन्ना
ना जाने कौन फाड़ जाता है ?
जिन्दगी एक एक सांस से
धक्का-मुक्की करती है
रात के सन्नाटे में
रेत भी गीत गाती सुनाई दे जाएगी
कुदरत भी यहां
नित-नए खेल रचती है ।
रेत के इस तपते समंदर में
धोरों की ढलान पर
हठ जोगी-सा
एक टांग पर खड़ा है खेजड़ा
गहरी साधना में व्यस्थ है,
और तपती दोपहरी में बोलती कमेड़ी
किसी भक्त-सी
रामनामी घुन में मस्त है ।

यहां प्रत्येक जीव सांस-सांस में
जिंदगी से जंग करता है
वह चित्रण आपको यहां कहां मिलेंगे,
जहां फागुन
फूल-फूल में नए-नए रंग भरता है ?

अनुवाद : नीरज दइया