Last modified on 22 नवम्बर 2010, at 18:35

आभास / श्रीकांत वर्मा

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:35, 22 नवम्बर 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

दूर उस अँधेरे में कुछ है, जो बजता है
शायद वह पीपल है ।

वहाँ नदी-घाटों पर थक कोई सोया है
शायद वह यात्रा है

दीप बाल कोई, रतजगा यहाँ करता है
शायद वह निष्ठा है ।