डायरी के फाड़ दिये गये पन्नों में भी
साँस ले रही होती हैं अधूरी कविताएँ
फडफ़ड़ाते हैं कई शब्द और उपमायें।
विस्मृत नहीं हो पातीं सारी स्मृतियाँ
सूख नहीं पाते सारे जलाशय
श4दों और प्रेम के बावजूद
बन नहीं पातीं सारी कविताएँ।
डायरी के फटे पन्नों में
प्रतीक्षा करती हैं कविताएँ
संज्ञा की,
प्रतीक की,
या विशेषण की नहीं
दु:ख की उस जमीन की
जिस पर वो अ1सर पनपती हैं।