Last modified on 24 नवम्बर 2010, at 18:42

बेटी-२ / मनीष मिश्र

Firstbot (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:42, 24 नवम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= मनीष मिश्र |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <poem> मेरी बेटी जमा कर…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मेरी बेटी
जमा करती है आवाज़ें
और बनाती है
एक तुतलाता, लडख़ड़ाता-सा शब्द।
शब्द देर तक भटकता है
अर्थ की बेमानी तलाश में
और फिर बिखर जाता है
आवाज में।