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रचना. / मोहन आलोक

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 बो रचै
अर जणा रच देवै
तो बी मांय
कोई खामी नईं बचै ।

हू सकै
आपनै बा रचना अधूरी सी लागती रैवै
आप मांय कोई जिज्ञासा
            जागती रैवै !
आप कोई दूजी रचना रै साथै
बींरो मिलाण करता रैवो
अर आपंआप नै यूं
बेफालतू हलकान करता रैवो ।

पण बा रचना
जिसी हुवै
जितणी हुवै
      पूरी हुवै है ।
कोई रचना रो
किणी दूजी रचना जिसी हुवणो
      कणा जरूरी हुवै है ?