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जल विरह / संतोष मायामोहन

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जब गिरती है बूंद
पृथ्वी तल
छम-छम नाचता है जल ।
हर्षित होती है बावड़ी
बरसने की आशा
जी उठता है जल
गर ना बरसे
तो सूक मरे
विरह ।

अनुवाद : नीरज दइया