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बगत / मदन गोपाल लढ़ा

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बगत
थूं सांचो है
पण अबखी है
ओळखांण थारी
लखदाद थारै रूप नै।

म्हैं जाणूं सींव
मानखै री खीमता री
इतियास नै गोखणो
फगत भरम है
जिंयां कोनीं मडैं विगत
ढ़ळती रात रै सपनां री

सुतंतर हुवै हरेक छिण
जिणरी निजू मरजादा हुवै
निजू हुवै दीठ
जको हुवै बुद्ध
बो ई ओळखै
बगत रै सांच नै।