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थार कबीर / ओम पुरोहित कागद

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बेकळा री
चादर माथै
आरी-तारी सरीखा
काढे कसीदा
अचपळी पुरवाई
कोरै समन्दर
हबोळा खांवतो ।

थार कबीर
अंगेजै चादर
मुरधरी
पण राखै
जस री तस ।