पद काव्य रचना की गेय शैली है।
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- जय गंगे जय तारनितरनि / जुगलप्रिया
- जय जगदीश हरे, प्रभु / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- जय जगपति, जय जनपति, रघुकुलपति राम / बिन्दु जी
- जय जय जय राधा अभिराम / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- जय जय ब्रजराज-तनय ब्रजबन-बिहारी / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- जय जय राधा, रासेश्वरि जय / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- जय जय शंकर शूल-डमरुधर / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- जय जय श्री वल्लभ प्रभु श्री विट्ठलेश साथे / रसिक दास
- जय जय श्री सूरजा कलिन्द नन्दिनी / छीतस्वामी
- जय जय हरि-हृदया वृषभानु-सुकुमारी / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- जय दुर्गे दुर्गतिनाशिनि / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- जय नँद-नंदन प्रेम-बिवर्धन / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- जय नँद-नन्दन, जय गोपाल / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- जय परमेश्वरि, जयति परम / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- जय भव-भामिनि / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- जय महाराज ब्रजराज-कुल-तिलक / गदाधर भट्ट
- जय राधे जय श्री राधे / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- जय राधे! जय राधे! जय राधे! / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- जय राधे, जय जय राधे / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- जय वसुदेव-देवकी-नन्दन / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- जय वसुदेव-देवकीनन्दन, जयति यशोदा-नंदनन्दन / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- जय श्री जमुने कलिमल-तारिनि / जुगलप्रिया
- जय श्रीराम, भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्र / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- जय-जय बिन्दु और ब्रजनंदन / बिन्दु जी
- जयति जय गोप्रेमी गोपाल / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- जयति जय जयति रस-भाव-जोरी / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- जयति जय श्रीबृषभानु-दुलारी / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- जयति रसिकिनि राधिका / जुगलप्रिया
- जयति राधिका जीवन, राधा-बन्धु, राधिकामय चिद्घन / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- जयति श्रीराधिके सकलसुखसाधिके / गदाधर भट्ट
- जल भरे झूमैं मानौं भूमैं परसत आप / श्रीपति
- जलवा-ए-यार है कहाँ जख्मी दिलो जिगर में है / बिन्दु जी
- जला दो उर मेरे विरहानल / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- जसुदा के अजिर बिराजें मनमोहन जू / आलम
- जसुमति दौरि लिये हरि कनियां / सूरदास
- जसुमति लै संग नंद / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- जसोदा कहाँ लौं कीजै कानि / सूरदास
- जसोदा तेरो भलो हियो है माई / सूरदास
- जसोदा हरि पालनैं झुलावै / सूरदास
- जसोदा!कहा कहौं हौं बात / चतुर्भुजदास
- जसोदा, तेरो भलो हियो है माई / सूरदास
- जहाँ कलह तहँ सुख नहीं / नागरीदास
- जहाँ पवित्र भाव हैं रसमय / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- जहिया भइल गुरु उपदेस / धरनीदास
- जा दिन तैं छवि सौं मुसुकात / मतिराम
- जा मुख तें श्री यमुने यह नाम आवे / छीतस्वामी
- जाकी खूबखूबी खूब खूबन की खूबी यहाँ / ग्वाल
- जाकी जासों लगन लगी / स्वामी सनातनदेव
- जाके उर उपजी नहिं भाई / दरिया साहब
- जाको वेदहुँ भेद न पायो / स्वामी सनातनदेव
- जाकौं प्रभु अपनो करि / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- जाग रहे तुम कौन सदा मम निभृत हृदय में / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- जागती ज्योति / नाथूराम शर्मा 'शंकर'
- जागिए ब्रजराज कुंवर / सूरदास
- जागिये ब्रजराज कुंवर / सूरदास
- जागो मेरे लाल जगत उजियारे / परमानंददास
- जाता कभी स्वभाव न खल का / बिन्दु जी
- जान गया जो भरी हुई हैं / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- जानता हूँ पाप है / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- जानि पाये हो ललना / गोविन्ददास
- जापर दीनानाथ ढरै / सूरदास
- जापै प्रियतम कृपा करैं / स्वामी सनातनदेव
- जाये के कइसे कहीं परदेसी, रह भर फागुन, चइत में जइह / मन्नन द्विवेदी 'गजपुरी'
- जावक के भार पग धरा पै मंद / द्विज
- जाहि देखि, चाहत नहीं / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- जाहि यह लगै प्रीति को रंग / स्वामी सनातनदेव
- जितना जितना मन से आत्मसुखेच्छा का / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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