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आँधी चली थी शम्आ बुझाने तमाम रात / आरती कुमारी

आँधी चली थी शम्आ बुझाने तमाम रात
जलते रहे थे ख़्वाब सुहाने तमाम रात

यूँ मेरे दर्दे दिल की दवा बन सके न तुम
रिसते रहे वो ज़ख्म पुराने तमाम रात

तोड़ा था जिसके दिल को सितारों ने बेसबब
आये थे जुगनू उसको मनाने तमाम रात

जिनके लिए थी दिल की वो महफ़िल सजी हुई
आए नहीं वो रस्म निभाने तमाम रात

आई नहीं न आँख लगी सुब्ह हो गई
करती रही ये नींद बहाने तमाम रात