Last modified on 21 जुलाई 2016, at 01:23

अंगिका रामायण / छठा सर्ग / भाग 6 / विजेता मुद्‍गलपुरी

कहलन विश्वामित्र वीर के धरम छिक
जगत के हित में सदोष काज करना।
कहीं उतपाती मिलेॅ, सुर-मुनि घाति मिलेॅ
ओकरोॅ विरोध में आवाज खड़ा करना।
नारी अेॅ पुरूष के विचार बिन वध करोॅ
बहुत जरूरी भेल ताड़िका के मरना।
ताड़िका के वध बिन यज्ञ न सफल होत
बड़ी मुसकिल भेल हरि के सुमरना॥51॥


दोहा -

मुद्गल संयम शील छै, नारी के पहचान।
नारी हय शृंगार बिन, हिंसक जीव समान॥6॥

रहै हतियारनी विरोचन के बेटी बड़
धरती पे जौने उतपात बड़ी कैलकै।
नारी अेॅ पुरूष के विचार बिन इन्द्रदेव
एक आततायी के विनाश आवी कैलकै।
दैत्य गुरू के रोॅ माता इन्द्र के विरोधी भेल
जेकरोॅ कि वध खुद विष्णु आवि कैलकै।
एकरोॅ अलावे कई नारी हतियारिनी के
छत्रपति पुरूष प्रवर वध कैलकै॥52॥

गुरु के आदेश सिर धारि प्रभु रामचन्द्र
पहिने धनुष के टंकार भारी कैलकै।
धनुष टंकार सुनी ताड़िका सचेत भेली
क्रोध भरी ध्वनि दिश रूख तब कैलकै।
जन्नेॅ से आवाज भेल उन्हियें ऊ दौड़ी गेल
अपनोॅ ऊ रूप विकराल आरू कैलकै।
ताड़िका के परम भयंकर स्वरूप राम
करि केॅ इसारा लक्षमण के दिखैलकै॥53॥

नारी के रोॅ नाम पर पहिनें संकोच भेल
तब तक ताड़िका प्रहार करि देलकै।
पल में ही तब राम वाण के प्रयोग भेल
जौने ताड़िका के भुजहीन करि देलकै।
लक्षमण काटलक ताड़िका के नाक-कान
एहनो पे ताड़िका न तनियों चितैलकै।
आरो विकराल भेली, घोर गरजन करि
बड़ोॅ-बड़ोॅ पत्थर असंख्य बरसैलकै॥54॥

कहलन विश्वामित्र साँझ नजदीक भेल
साँझ केॅ निशाचर प्रबल बनि जाय छै।
साँझ में आसुरी माया अधिक फलित होत
साँझ में निशाचर न केकरो चिताय छै।
ताड़िका असुरनी के बल मरदन करोॅ
साँझ बेर निशिचर बली कहलाय छै।
सूरज डूबै के पहिने एकर वध करोॅ
करोॅ न विलम्ब अब साँझ भेलोॅ जाय छै॥55॥

तब शब्द वेधी वाण मारलन रामचन्द्र
ताड़िका सहस्त्र-दस वाण बीच घिरलै।
फेर एक वाण तब हानि क चलैलकाथ
ताड़िका बिरिछ नाकि धरती पे गिरलै।
ताड़िका के वध होतें कौशिक प्रसन्न भेला
तब देवगण के रोॅ सब बल फिरलै।
जयति-जयति कहि उठल यति समाज
फेर से आतम बल सब के बहुरलै॥56॥

सोरठा -

मरल ताड़िका निसचरी, मिटल एक आतंक।
हरसल सब टा देवगण, मुनि जन भेल निशंक॥9॥

विश्वामित्र मुनि के सराहै सब देव मिली
सब मिली राम पर नेह बरसैलका।
सब देवता मिली केॅ अनेक अदृश्य अस्त्र
प्रेम के रोॅ बस रामचन्द्र के थम्हैलका।
सब देव फिरल आकाश पथें देवलोक
सब मिली जय-जय कौशिक के गैलका।
ताड़िका शापित वन, ताड़िका से मुक्त भेल
एक रात राम वहेॅ वन में बितैलका॥57॥

जौने शक्ति, जौने मंत्र, जौने अस्त्र विश्वामित्र
बरसों-बरस तक तप करि पैलका।
बरसों-बरस के संचित पूँजी विश्वामित्र
योग्य शिष्य पावी रामचन्द्र के थम्हैलका।
गुरु के सहजता के ऋणि भेल रामचन्द्र
गुरु के चरण रज सिर पर धैलका।
भनत विजेता न बिसारोॅ कभी गुरु ऋण
बिन गुरु राम भी न राम कहलैलका॥58॥

देवता असुर नर किन्नर गंधर्व सिनी
कोनो अब राम सनमुख न ठहरतै।
अब रामचन्द्र विश्वामित्र के आशिष बेलेॅ
सामने जो आवेॅ महाकाल भी तेॅ लड़तै।
फेरो देलकाथ जे अनेकानेक दिव्य-अस्त्र
असुर समाज के विनाश जौने करतै।
दण्ड-चक्र, धर्म-चक्र, काल-चक्र, विष्णु-चक्र
जैसनोॅ अनेक चक्र रामचन्द्र धरतै॥59॥

देलन अपन वज्र देवराज इन्द्र आवी
आवी केॅ त्रिशूल महादेव जी थम्हैलका।
ब्रह्मा जी प्रकट भें केॅ देलकाथ ‘ब्रह्म-अस्त्र’
मोदनी-शिखरनी दू गदा भी थम्हैलका।
कालपाश, धर्मपाश, उत्तम वरूणपाश
ब्रह्म देवता से उपहार राम पैल्का।
अशनि धनुष के रोॅ संग नारायण अस्त्र
सादर सम्मान सब रामचन्द्र धैलका॥60॥