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अंतर्मन दीप्ति / रचना उनियाल

सत रज तम गुण का कर शोधन, शुद्ध चेतना भान करें।
अपनाकर पावन भावों को, देश जगत कल्यान करें।।

बँघकर जग की माया में मनु, मानस गुण को भूल गया।
जीवन कारक सोम रसों का, उन्हीं पलों में मूल गया।।
मानवीय गुण का कर संचय, हृदय धरें संज्ञान करें।
सत रज तम गुण का कर शोधन, शुद्ध चेतना भान करें।।

शांति भावना शांति कामना, हर बंधन की पालक है।
सत्य भाव जो जान गया मन, सरस कर्म का चालक है।।
सकारात्मकता दृष्टि को रख, अंतह का उत्थान करें।
सत रज तम गुण का कर शोधन, शुद्ध चेतना भान करें।

परम पिता के परमयोग से, सृष्टि वाटिका प्राण खिला।
जीव कोशिका भाव पोषिका, से प्राणी निर्माण खिला।।
अंतर्मन को दीप्त करें सब, ईश ज्ञान सम्मान करें।
सत रज तम गुण का कर शोधन, शुद्ध चेतना भान करें।