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अंति‍म गाँठ / रश्मि शर्मा


बस, एक अंति‍म गाँठ
और उसके बाद
अपने दुपट्टे को बॉंध दूंगी
उस पक्‍की सड़क के कि‍नारे वाले
बरगद की सबसे ऊँची शाख पर
परचम की तरह
जहॉं से
उम्र गुजर जाने तक
एक न एक बार
तुम गुजरोगे ही
इस ख्‍याल से
इस याद से
कि‍ जाने वाले की
एक नि‍शानी तो देख आऊँ
तब उतार लेना उस शाख से
मेरा दुपट्टा
और
एक-एक कर खोलना
उसकी सभी गाँठें

देखना
सबसे पुरानी गाँठ से नि‍कलेगी
मेरे पहले प्‍यार की खुश्‍बू
जो जतन से बँधी थी
पहली बार
तुम्‍हारी याद में

फि‍र दूसरी..तीसरी...चौथी
और हर वो गाँठ
जि‍समें मेरे उम्र भर के ऑंसू हैं
और लिपटी हुई तुम्‍हारी याद

हां
एक भीगी-भीगी गाँठ अलग सी होगा
जि‍समें
बांध रखा है मैंने
तुम्‍हारा भेजा
वह चुंबन भी
जो बारि‍श की बूँदों की तरह
लरज़ता रहा
ताउम्र मेरे होंठों पर
और

अंति‍म गाँठ है
तेरे-मेरे नाम की
साथ-साथ
कि‍ कभी तो
आओगे तुम
और जब दुपट्टे की गाँठ खोलोगे

क्‍या पता तब तक
तुम मेरा नाम भी भुला चुके होगे
तो ये नाम याद दि‍लाएगा
कि‍ कभी हममें भी कुछ था।