शाम
गुमगुनी धूप
दबे पाँव
बुलंद दरवाज़े तक आई
थोड़ा सकुचाई
द्वार पर दस्तक दी
और फिसल कर
अंधेरे की कोख़ में
दुबक गई
रात
तुंद सर्द हवा
भागती आई
बंदीगृह की प्राचीर से टकराई
चीख़ी चिल्लाई
अंतत: हारकर
अखरोट के पेड़ों में जा छिपी
सुबह
प्रहरी के निकलने से पहले
कैदी की छाया सी काया
आख़िरी बार छटपटाई
और स्थिर हो गई
ठीक दस बजे
जेलर ने डाक्टर को फोन किया
चले आइए! करनी है
छब्बीस नम्बर की शव परीक्षा