Last modified on 15 जून 2020, at 16:38

अंधारै सूं / इरशाद अज़ीज़

सूरज
घणी देर तांई
सूवतो रैवै
हुंवतो रैवै
सुपनां मांय अंधारो

थूं जद चावै
भर सकै
थारै मन मांय रंग
बाथेड़ा तो करणा पड़सी
जीते-जी
अंधारै सूं।