- उड़ चला अकेला,
तोड़ प्रीति-बन्ध विहग उड़ चला अकेला ।
- भूले सब स्नेह-गान,
- छोड़ा तरु-तीर मोह,
उड़ा विकल खग अजान श्वेत पंख फैला ।
- आशा विश्वास धीर
- भर कर मन में अकूल,
- बिसरा पथ-प्यार-पीर,
उड़ता जाता अधीर कहीं इस अबेला ।
(1937 में आगरा में रचित)
तोड़ प्रीति-बन्ध विहग उड़ चला अकेला ।
उड़ा विकल खग अजान श्वेत पंख फैला ।
उड़ता जाता अधीर कहीं इस अबेला ।
(1937 में आगरा में रचित)