जो धर्म को है मानते स्वदेश से बड़ा
उन्हें पकड़-पकड़ करो कतार में खड़ा
फिर एक साथ गोलियों से भून दो उन्हें
ये भेड़िये हैं, अब न अधिक खून दो इन्हें
वे धन्य जिनके लाल ईंट में गये चुने
नमस्य वे, प्रणम्य जो रिपु-रक्त में सने
था एक किन्तु, पाँच को अमर बना गया
जंजीर गुलामी की गिरी टूट, झनझना
स्वदेश पर न आये आँच, पाँच रहेंगे
कट जायेंगे हजारों शीश, जब ये कहेंगे
माहौल क्या था और आज क्या ये हो रहा
भाई ही भाई के लहू से तेग धो रहा
जो देशभक्त हैं वे मस्त झूम रहे हैं
जो नासमझ हैं-बम लिये वे घूम रहे हैं
समझा दो इन्हें अब न और सह सकेंगे हम
भारत अंखड ही रहेगा जब तलक है दम
यदि मानते नहीं, करो कतार में खड़ा
ये दुश्मनाने हिंद हैं, गोली से दो उड़ा
चलने न देंगे हम विदेशियों की चाल को
‘गंगोत्री’ का जल भरेगा ‘स्वर्ण-ताल’ को