अगर मैं काल में हूँ
तो अनन्त क्यों नहीं
अगर मैं दिक् में हूँ
तो लौट-लौट
क्यों आता नहीं यहीं
बाहर हूँ दिक्काल से
तो मृत्यु फिर क्या कर लेगी
मेरा
अगर दिक्काल में है
वह
तो मृत्यु ख़ुद भी
मर्त्य कैसे नहीं ?
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20 जून 2009