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अग्नि / जया आनंद

दाहकता जला देती है
अग्नि की
भस्म कर देती है
सब कुछ
 वही अग्नि
करती है निर्माण
संसृति का
सुवासित करती हुई
 सृष्टि को
होती है अपने
पवित्रतम रूप में