अचानक कुछ नहीं होता
बस एक परदा है
जिसके पीछे पहले से ही
सब कुछ होता है तय ।
और सामने आने पर
लगता है अचानक।
गोधरा अचानक नहीं था
निठारी अचानक नहीं है
अचानक नहीं है
सद्दाम की फाँसी।
दोस्तों का विमुख होना तक
नहीं है अचानक ।
सब पहले से तयशुदा है
सबके अपने-अपने हिस्से हैं ।
परिदृश्य ही ऐसा है
जहाँ मिट गया है
विलाप और प्रलाप का भेद
और नैतिकता
तमाशबीन-सी खड़ी है
हारे थके लोगों का संलाप वन ।
अब अचानक और औचक
कुछ भी नहीं होता
सब अपनी-अपनी गोटी बिछाते हैं
और तुम्हें पता भी नहीं
शिकारगाह में शिकारी ताक में है ।