Last modified on 28 अगस्त 2014, at 23:47

अच्छे रहते / महेश उपाध्याय

खत्ती में ऽनाज की तरह
भर लेते गर्मी की धूप
                अच्छे रहते

जाड़ों में महँगी होती
बिन माँगे देती मोती
घर पर आराम से
पड़े, क़िस्से कहते
                अच्छे रहते

ये अपनी साहूकारी
करती बातें अख़बारी
चौक्के की बात क्या
कहें, छक्के रहते
                अच्छे रहते