बिजली-पानी
में जूझना आम शहरी
इसी समस्या में पिसता
हमारा किसान हमारा भविष्य
छायादार वृक्षों के नीचे
पढ़ते नौनिहाल
बंक करते कालेज से छात्र
‘मॉल’ में नज़र आते हैं
उपले थापती ग्रामीण बालाएं
टी.वी. पर देखती हैं
‘‘के दिखावे से’’
बोलती हुई रोटी बनाती हैं
और अति शहरी
रेस्टोरेंट में जाती हैं
वही खाती हैं यानी अपने को
अपने आप से छिपाती हैं
क्या करंे भाई साहब
वक्त ख़राब है
‘‘मित्तल साहब ने सुबह की
सैर करते हुए सतीश अग्रवाल
से कहा ।’’