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अनन्यता / सुभाष राय

जीते जी मार सकते हो ख़ुद को
अपने ही हाथ के खँजर से ?
हाँ, तो आओ अनन्य भाव से
बिना चाह, बिना चिन्ता
तन, मन, प्राण सौंप दो मुझे
तुम्हारा सम्पूर्ण योग-क्षेम ओढ़ लूँगा मैं