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अनश्वर जीवन / सुन्दरचन्द ठाकुर

उसकी आग़ कभी ख़त्म नहीं हुई
मैंने प्रेम किया इस तरह
जैसे वह किया जाता रहा है

उसके बाद घेरा मुझे विचारधाराओं ने
फिर लोग दिखे
लोग जो प्रेम करते थे
नफ़रत करते थे
जो भूख से मरते थे
अचानक वे हर ओर दिखाई दिए मुझे

तब कहीं उभरकर आया जीवन
किसी गर्भवती की तरह
जो रोज़ इन्तज़ार करता था
एक नए जन्म का