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अनुगूँज / कुंदन अमिताभ

के कहलकै,
”मेरा भारत महान“
हम्में कहलियै आरो शब्द
तैरलऽ तैरलऽ हवा में
बिखरी गेलै मैदानऽ में
हिन्नेॅ-हुन्नेॅ घौनऽ बनऽ के आगू
अचम्भा में डालतें
हर जीवऽ केॅ
”के कहलकै मेरा भारत महान“
”के कहलकै मेरा भारत महान“
फुनगी लगाँकरऽ डार
अकचकैलऽ सूरज केरऽ रोशनी में
बनऽ के अन्हारऽ मंे दबलऽ
नरमैलऽ हवौं बेशक
सुनलकै हमरऽ फुसफुसाना
छाहरी में जिरैतें
रौदी में दरबन मारतें
परिवेश (?) कहलकै
जे हम्में कहलियै
सपाट बोकऽ ऐन्हऽ।
केकरा परवाह छै-
रहेॅ ”अपना भारत सुन्दर“
हम्में कपसतें-कपसतें गरजलियै
हवा में थिरकन होलै
दरद भरलऽ आवाज बिखरी गेलै
हिन्नेॅ हुन्नेॅ सन्नाटा में
”केकरा परवाह छै, रहेॅ अपना भारत सुन्दर“
”केकरा परवाह छै, रहेॅ अपना भारत सुन्दर“।