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अनुनय / शशि पाधा

कुछ कहो, कुछ तो सुना
गीत कोई गुनगुनाओ।

बिन कहे और बिन सुने ही
रात आधी हो गई
मौन के आकाश में हर
आस मेरी खो गई

छेड़ दो न सुर सुरीले
राग कोई ऐसा गाओ।

भोर होने को अभी दो -
चार पल बाकी पड़े हैं
यह घड़ी संवारने को
दीप ले जुगनूँ खड़े हैं

रोक लो न यह प्रहर
चाँद को तुम ही मनाओ।

साधना में लीन सी
मौन ये चारों दिशाएँ
रात की कालिमा में
मौन जलती तारिकाएँ

थाम लो न हाथ मेरा
रात को कुछ तो सजाओ।

गीत कोई गुनगुनाओ!!!