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अनुबोध / महेन्द्र भटनागर

गहन अंतर में
पीर भर लो !
तरल आँखों में
नीर भर लो !

पीर ही देगी तुम्हारा साथ
थाम लो इसका
करुण-निधि-रेख अंकित हाथ,
हिम-शीत प्यारा हाथ !
रे यही देगा तुम्हारा साथ
वर लो !

सांध्य-जीवन के
थके बोझिल क्षणों में
कुहर-गुंठित सजल धूमिल क्षणों में
तम घिरे घर में
पीर वर लो !
लौह अंतर में
पीर भर लो !
अचल आँखों में
नीर भर लो !

ले
असीमित क्षार-सागर
वज्र-विज्ञापित-बवण्डर
अतिथि बन
मेघ आये हैं,
तुमको घेर छाये हैं
प्यार कर लो !
वेदना उपहार लाये हैं
सहज स्वीकार कर लो !
टूटते कमज़ोर कंधों पर
पर्वतों का भार
धर लो !
गहन अंतर में
पीर भर लो !
तरल आँखों में
नीर भर लो !