अभी नहीं-क्षण भर रुक जाओ, महफिल के सुनने वालो! मत संचित हो कोसो, हे संगीत सुमन चुनने वालो! नहीं मूक होगी यह वाणी, भंग न होगी तान- टूट गयी यदि वीणा तो भी झनक उठेंगे प्राण! दिल्ली जेल, दिसम्बर, 1932