कब तक जंग में लगी-सी पड़ी थी
चारों ओर देखती, डेस्क पर, बिस्तर पर
पड़ी रहती जेब में, फाइलों के बीच
कई बार चलने को हुई
झिझकती रूक गई।
अन्ततः क़लम
चल पड़ी है
पीले रंगों की ओर
जिनकी वजह से वह रुकी पड़ी थी।
कब तक जंग में लगी-सी पड़ी थी
चारों ओर देखती, डेस्क पर, बिस्तर पर
पड़ी रहती जेब में, फाइलों के बीच
कई बार चलने को हुई
झिझकती रूक गई।
अन्ततः क़लम
चल पड़ी है
पीले रंगों की ओर
जिनकी वजह से वह रुकी पड़ी थी।