Last modified on 15 अगस्त 2017, at 18:11

अन्तिम प्रेम / चन्द्रकान्त देवताले

हर कुछ कभी न कभी सुन्दर हो जाता है
बसन्त और हमारे बीच अब बेमाप फासला है
तुम पतझड़ के उस पेड़ की तरह सुन्दर हो
जो बिना पछतावे के
पत्तियों को विदा कर चुका है

थकी हुई और पस्त चीजों के बीच
पानी की आवाज जिस विकलता के साथ
जीवन की याद दिलाती है
तुम इसी आवाज और इसी याद की तरह
मुझे उत्तेजित कर देती हो

जैसे कभी- कभी मरने के ठीक पहले या मरने के तुरन्त बाद
कोई अन्तिम प्रेम के लिए तैयार खड़ा हो जाता है
मैं इस उजाड़ में इसी तरह खड़ा हूँ
मेरे शब्द मेरा साथ नहीं दे पा रहे
और तुम सूखे पेड़ की तरह सुन्दर
मेरे इस जनम का अंतिम प्रेम हो।