अभी यहाँ अन्धेरा है
मैं बैठा हूँ कुछेक बूढ़े वृक्षों को ताकता
गुमनामी के अनन्त में
चारों तरफ शहर है
थोड़ा सुस्त, थोड़ा उदास भी
शायद मेरी तरह सोच में डूबा
शायद मेरी तरह अकेला
आकाश के चमकते सितारों को ताकता
वह भी यहाँ बैठा है
मेरे क़रीब
अपने घर के बरामदे पर
गुमनामी के अनन्त में
अभी मेरे शहर में अन्धेरा है ।