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अपनी बात / प्रेमशंकर शुक्ल

हमारे भीतर

धड़कता हुआ

धरती का कोई कोना है

जिससे हम

धरती पहचान लेते हैं


नदी है कोई

जिससे हम बाहर की नदी

देख लेते हैं


भीतर के आकाश में

शब्द हैं कुछ

कह पाते हैं

जिससे हम

अपनी भी बात को।